Monday, February 21, 2011

संघ कर रहा धार्मिक आबादी का अध्ययन

-मनोज जोशी

भोपाल. एक तरफ देश में जनगणना का काम चल रहा है और दूसरी तरफ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पूरे विश्व की धार्मिक आबादी का अध्ययन कर रहा है। संघ का मानना है कि उसका यह अध्ययन समाजशास्त्रियों को कई सामाजिक व राजनीतिक समस्याओं का हल निकालने में मदद करेगा।

संघ से जुड़े पंद्रह रिसर्च स्कॉलर्स की टीम अमेरिका, यूरोप और एशिया सहित विश्व के अन्य सभी महत्वपूर्ण देशों की धार्मिक आबादी के आंकड़े जुटा रही है। पिछले डेढ़ दशक से पूवरेत्तर भारत में संघ के प्रचारक के रूप में काम कर रहे विनय कुमार इसका नेतृत्व कर रहे हैं।


फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने वाले संघ के एक कार्यकर्ता ने बताया वे और उनकी टीम के अन्य सदस्य अलग-अलग देशों की जनगणनाओं के आंकड़े जुटा रहे हैं। 19 वीं शताब्दी से लेकर हाल ही में हुई जनगणनाओं के आंकड़े और उनके धार्मिक वर्गीकरण के आंकड़ों के लिए वे इंटरनेट का सहारा तो ले ही रहे हैं। साथ में उन देशों में काम कर रहे कुछ ऐसे संगठनों की भी संघ मदद ले रहा है, जो संघ की तरह यह मानते हैं कि धर्म के आधार पर आबादी का असंतुलन खतरनाक है।


मंडला में हाल में संपन्न हुए सामाजिक कुंभ में आए इस कार्यकर्ता ने बातचीत में कहा कि यह पता लगाया जा रहा है कि 19 वीं शताब्दी में किस देश में किस धर्म को मानने वाले लोग थे। उस समय उस देश का राजनीतिक व सामाजिक माहौल कैसा था? फिर धार्मिक आबादी में क्या बदलाव हुआ और उसके साथ क्या समस्याएं आनी शुरू हुईं।


2005 से शुरू हुए इस अध्ययन की रिपोर्ट 2013 तक सामने आ जाएगी और तभी भारत की जनगणना के आंकड़े भी सार्वजनिक हो जाएंगे। वे कहते हैं कि हम कोई विवाद नहीं खड़ा करना चाहते और अध्ययन पूरा होने तक पूरी टीम इस पर मौन रहेगी।


इस अध्ययन से जुड़े लोग दबी जुबान में यह मानते हैं कि अध्ययन की बिसात तो 2003 में ही बिछ गई थी। उस साल 2001 की जनगणना के आंकड़े सामने आने पर यह बात सामने आई थी कि भारत में मुस्लिम आबादी 30 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है और हिंदू आबादी 15 प्रतिशत की दर से।


संघ ने अपनी प्रतिक्रिया में इसे सामाजिक व राजनीतिक रूप से खतरनाक बताया था। इस पर काफी विवाद हुआ और संघ के पास भी अपनी प्रतिक्रिया के समर्थन में कोई तर्क मौजूद नहीं था। अब 2011 की जनगणना के आंकड़ों पर प्रतिक्रिया के लिए संघ के पास एक वैश्विक अध्ययन का तर्क भी होगा।

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